जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhad) देश के 14वें उपराष्ट्रपति बन गए हैं। उन्होंने 6 अगस्त 2022 को उपराष्ट्रपति पद के लिए हुई वोटिंग में विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को हराया। उपराष्ट्रपति के चुनाव में राज्यसभा और लोकसभा के मिलाकर कुल 725 सांसदों ने मतदान किया। जगदीप धनखड़ को 528 वोट मिले, वहीं मार्गरेट अल्वा के खाते में सिर्फ़ 182 मिले।
देश के मौजूदा उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू का कार्यकाल 10 अगस्त को समाप्त हो गया है। इसके बाद जगदीप धनखड़ ने अगले उपराष्ट्रपति के तौर पर शपथ लिया। कैसा रहा धनखड़ का राजनीतिक सफर, कांग्रेस छोड़ बीजेपी में क्यों गए और फिर कैसे बने देश के नए उपराष्ट्रपति? Scroll down to read about vice president Jagdeep Dhankad.
विज्ञान छोड़कर वकालत करने लगे
मूलत: राजस्थान के रहने वाले हैं जगदीप धनखड़। उनका जन्म सन् 1951 में झुंझुनू के किठाना गांव में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही सरकारी स्कूल में हुई। उसके बाद उनका सेलेक्शन सैनिक स्कूल में हुआ। 6 से 12 तक की पढ़ाई चित्तौड़गढ़ के सैनिक स्कूल में की। सैनिक स्कूल के बाद धनखड़ ने राजस्थान यूनिवर्सिटी से फिज़िक्स में ग्रैजुएशन किया। हालांकि इसके बाद उन्होंने विज्ञान की पढ़ाई छोड़कर वकालत को चुना। 1978-79 में धनखड़ ने राजस्थान यूनिवर्सिटी से ही LLB किया था।
साल 1979 में धनखड़ ने राजस्थान बार काउंसिल में रजिस्ट्रेशन करा लिया और वकालत शुरू कर दी, जो राजनीति के अलावा उनका मुख्य पेशा बना गया और पश्चिम बंगाल के गर्वनर बनने तक जारी रहा। हालांकि जगदीप धनखड़ के साले प्रवीण बलवदा कहते हैं कि सैनिक स्कूल से 12वीं की पढ़ाई के बाद धनखड़ का NDA (नेशनल डिफेंस एकेडमी) में सेलेक्शन हो गया था। लेकिन परिवार के पूर्वाग्रहों ने धनखड़ को सेना में अफसर नहीं बनने दिया। इसलिए वो वकील बन गए।
धनखड़ राजस्थान हाईकोर्ट में वकालत कर रहे थे। 10 साल की एडवोकेट प्रैक्टिस के बाद बार काउंसिल किसी भी वकील को सीनियर एडवोकेट का पद देता है। 1990 में जगदीप धनखड़ को सीनियर वकील बनाया गया। लेकिन यही वो दौर था जब राजनीति में उनकी दिलचस्पी बढ़ने लगी थी। और इसी समय देश की राजनीति भी करवट ले रही थी। कभी राजीव गांधी के आँख-कान माने जाने वाले वी.पी सिंह ने उनके ही खिलाफ़ विरोध का बिगुल फूँक दिया था।
राजनीति में एंट्री
जगदीप धनखड़ को करीब से जानने वाले बताते हैं कि वो चौधरी देवी लाल की राजनीति से प्रभावित थे और देवी लाल ही उन्हें राजनीति में लेकर आए। साल 1989. देवी लाल उस साल अपना 75वां जन्मदिन मना रहे थे। बताया जाता है कि जगदीप धनखड़ देवीलाल का जन्मदिन मनाने राजस्थान से 75 गाड़ियां लेकर दिल्ली पहुंचे थे।
खैर, साल के अंत में लोकसभा चुनाव हुए। और जगदीप धनखड़ को इसका इनाम भी मिला। वीपी सिंह के जनता दल ने धनखड़ को उनके घर झुंझुनू से टिकट दे दिया। सरकार भी वीपी सिंह की बनी। देवी लाल डिप्टी पीएम बने। और राजनीति में एंट्री के साथ ही जगदीप धनखड़ को डिप्टी मिनिस्टर का पद मिला।
देवी लाल के साथ Jagdeep Dhankad के किस्से
लेकिन अभी सत्ता में वीपी सिंह के कुछ ही महीने बीते थे। और राम मंदिर को लेकर नेशनल फ्रंट गर्वमेंट में बीजेपी की टसल चरम पर पहुंच गई थी और बीजेपी ने सरकार से हाथ खींच लिया। वीपी सिंह की सरकार गिर गई थी।
इसके बाद सरकार आई चंद्रशेखर की। चंद्रशेखर को कांग्रेस ने बाहर से समर्थन दिया। कहा जाता है राजनीति में आए हुए जगदीप धनखड़ को अभी ज्यादा वक्त नहीं बीता था। लेकिन कांग्रेस का समर्थन लाने में धनखड़ की भूमिका भी अहम रही. और यहीं से धनखड़ राजीव गांधी के करीब आते गए। लेकिन बावजूद इसके धनखड़ चंद्रशेखर सरकार में मंत्री नहीं बन पाए।
इसके पीछे एक कहानी बताई जाती है। कहा जाता है चंद्रशेखर सरकार में राजस्थान के कोटे से दो मंत्री बनाए जा चुके थे। दौलत राम सारन और कल्याण सिंह कालवी को कैबिनेट मिनिस्टर का दर्जा दिया गया। जबकि पिछली सरकार में मंत्री रहे जगदीप धनखड़ को एक बार फिर डिप्टी मिनिस्टर का पद दिया जा रहा था। धनखड़ इस बात से नाराज़ हुए। आकाशवाणी और दूरदर्शन से चंद्रशेखर सरकार के मंत्रियों की लिस्ट में जगदीप धनखड़ का नाम भी बताया गया। लेकिन उन्होंने मंत्री बनने से ही मना कर दिया।
राजीव गांधी से Jagdeep Dhankad दोस्ती
कुछ महीने बीते और चंद्रशेखर की सरकार गिर गई और राजीव गांधी से नज़दीकी धनखड़ को कांग्रेस में ले आई। 1991 में चुनाव हुए। 1989 के लोकसभा चुनाव में झुंझुनू से धनखड़ के सामने कांग्रेस के कैप्टन अयूब ने चुनाव लड़ा था। राजीव गांधी नहीं चाहते थे कि कैप्टन अयूब से टिकट लेकर धनखड़ को दिया जाए। इसके पीछे अल्पसंख्यकों को साधने की कवायद बताई जाती है। प्रवीण बलवदा बताते हैं कि राजीव गांधी ने जगदीप धनखड़ के सामने प्रस्ताव रखा। राजीव ने कहा, ”झुंझुनू से अयूब को लड़ने दो और आप इसके अलावा राजस्थान की जिस सीट से लड़ना चाहो टिकट ले लो.”
धनखड़ ने सारे फैक्टर्स को ध्यान में रखते हुए अजमेर सीट चुनी। जहां जाट, गुज्जर और मुस्लिम वोट मिलाकर करीब 50 प्रतिशत जनसंख्या बन रही थी। मुस्लिम वोटों के लिए कांग्रेस की सेक्यूलर छवि का दावा, जाट धनखड़ खुद थे। गुज्जर वोटों के लिए राजीव गांधी ने राजेश पायलट को लगाया। लेकिन यहां एक पेच था। पायलट को धनखड़ की राजीव से नज़दीकी रास नहीं आ रही थी। बताया जाता है कि राजीव ने पायलट को 2 बार हेलिकॉप्टर दिया कि अजमेर जाकर धनखड़ के लिए प्रचार करो। पायलट गए भी, लेकिन गुज्जर बहुल इलाके में नहीं। जहां उनकी जरूरत थी। इसके अलावा दावा ये भी किया जाता है कि अजमेर की गुर्जर बहुल विधानसभा नसीराबाद के विधायक गोविंद सिंह गुर्जर ने धनखड़ के खिलाफ प्रचार किया।
दावा ये भी था कि राजीव उस चुनाव में अपनी सीट अमेठी में प्रचार के लिए थोड़ी देर के लिए गए लेकिन अजमेर में उन्होंने जगदीप धनखड़ के लिए जमकर प्रचार किया। राजीव ने अजमेर में 10 घंटे से ज्यादा बिताए और देर रात तक प्रचार किया। लोग राजीव गांधी से हाथ मिलाने के लिए आतुर थे। राजीव मना नहीं कर रहे थे। लोगों के नाखून राजीव को लग रहे थे और उनके हाथ से खून तक आने लगा था।
लेकिन राजीव गांधी की मेहनत पर राजेश पायलट की तिकड़म भारी पड़ी। जगदीप धनखड़ अजमेर से चुनाव हार गए। राजस्थान की राजनीति को नज़दीक से देखने वाले कहते हैं कि अजमेर में जाट नेता ही लगातार जीतते आ रहे थे और धनखड़ भी जाट थे। अमजेर में जाटों की जनसंख्या हार जीत तय कर सकती थी। बावजूद इसके धनखड़ हार गए।
इस चुनाव के कुछ दिन बाद राजीव गांधी की हत्या कर दी गई। उसके बाद Jagdeep Dhankad का गांधी परिवार से रिश्ता ना के बराबर रह गया।
लोकसभा में हार के बाद धनखड़ विधानसभा गए। 1993 में अमजेर की किशनगढ़ सीट से चुने गए। 5 साल विधायक रहे। कांग्रेस विपक्ष में थी। धनखड़ का समर्थन करने वाले ये दावा करते हैं कि राजस्थान में बड़े नेता के तौर पर उभर रहे थे और अशोक गहलोत अपनी राजनीतिक पृष्ठभूमि में धनखड़ को खतरे के तौर पर देख रहे थे। साल 1998 में लोकसभा के चुनाव थे। उस दौरान की राजनीति को करीब से देख रहे लोग दावा करते हैं कि गहलोत ने माधव राव सिंधिया से कहा कि जगदीप धनखड़ को झुंझुनू से चुनाव लड़वाओ। सिंधिया ने धनखड़ को मनाया। धनखड़ नहीं चाहते थे कि वो इस बार झुंझुनू से चुनाव लड़ें। लेकिन सिंधिया की बात टाली नही। धनखड़ ने कहा कि चुनाव लड़ लेंगे लेकिन सोनिया गांधी झुंझुनू प्रचार करने आएं। सोनिया 50 किलोमीटर दूर चुरू तो गईं, लेकिन झुंझुनू नहीं। जगदीप धनखड़ फिर चुनाव हार गए।
यहां गहलोत पर अगर एक उंगली उठती है तो चार धनखड़ पर भी। जिस झुंझुनू में वो पैदा हुए, बड़े हुए। जहां से वो पहली बार सांसद बने। वहां कैसे हार सकते हैं। कहा ये भी जाता है कि Jagdeep Dhankad ये जान गए थे कि अब झुंझुनू से जीतना उनके बस की बात नहीं। इसलिए वो इस सीट से लड़ना ही नहीं चाहते थे। उसकी बड़ी वजह थे शीशराम ओला।
विशेषज्ञों का कहना था कि झुंझुनू में धनखड़ शीशराम ओला के आगे कहीं नहीं टिकते। साल 1995 में कांग्रेस के बड़े नेता एन डी तिवारी ने पार्टी छोड़ अपना अलग दल बनाया था जिसका नाम था ऑल इंडिया इंदिरा कांग्रेस (तिवारी)। शीशराम ओला ने एनडी तिवारी की पार्टी ज्वाइन कर ली। 1998 के चुनाव में झुंझुनू से जगदीप धनखड़ के सामने ओला थे। धनखड़, ओला के सामने टिक नहीं सके। बाद में शीशराम ओला कांग्रेस में वापस आए। 2004 में मनमोहन सिंह की UPA सरकार में उन्हें माइन्स मिनिस्ट्री का जिम्मा दिया गया।
हालांकि गहलोत से सियासी खींचतान का एक और पहलू है। भले ही धनखड़ समर्थक ये कहें कि गहलोत उन्हें पसंद नहीं करते थे, लेकिन एक सच ये भी है कि उनके भाई रणदीप धनखड़ को गहलोत का करीबी माना जाता है। गहलोत सरकार में रणदीप धनखड़ को राजस्थान टूरिज्म डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन का चेयरमैन बनाया गया।
रणदीप धनखड़ का कहना था कि, “भले ही मैं कांग्रेस में हूं और जगदीप जी बीजेपी में। लेकिन हम कोई प्रतिद्वंदी नहीं है। मुझे बहुत खुशी है कि बीजेपी ने उन्हें उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है।”
इधर, अब बारी आई विधानसभा चुनावों की। कांग्रेस ने कह दिया था कि जो लोकसभा में हार गए हैं, उन्हें विधानसभा में टिकट नहीं दिया जाएगा। धनखड़ का भी नाम इस लिस्ट में था और इसी के साथ धनखड़ की कांग्रेस के साथ पारी का अंत भी हो गया।
धनखड़ ने थामा बीजेपी का दामन
1999 में शरद पवार ने कांग्रेस छोड़ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) बनाई। Jagdeep Dhankad ने कांग्रेस छोड़ शरद पवार की पार्टी ज्वाइन कर ली। हालांकि NCP में वो ज्यादा दिन टिके नहीं। साल 2000 में धनखड़ ने बीजेपी का दामन थाम लिया।
लेकिन बीजेपी में आकर जगदीप धनखड़ को कुछ खास मिला नहीं। धनखड़ ने जब पार्टी ज्वाइन की तब वो वसुंधरा राजे के करीबी माने जाते थे। लेकिन माना जाता है कि समय के साथ ये करीबी दूरी में तब्दील हुई और बीजेपी में धनखड़ की रेस पर लगाम लगाने में वसुंधरा राजे का अहम रोल रहा। दूसरी तरफ अटल बिहारी गुट के नेता भी धनखड़ को खासा पसंद नहीं करते थे।
हालांकि 1998 के बाद से ही धनखड़ जितना राजनीति को सीरियस लेते थे उससे ज्यादा वो वकालत के पेशे को समय देते थे। धनखड़ ने 1987 में राजस्थान बार काउंसिल के अध्यक्ष भी रहे। धनखड़ अब तक राजनीति से ज्यादा वकालत के पेशे में सफल माने जाते थे। राजस्थान हाईकोर्ट के अलावा उन्हें सुप्रीम कोर्ट के बड़े वकीलों में भी गिना जाता रहा है। धनखड़ ने कई राज्यों के कई बड़े केस लड़े। लेकिन जिस एक केस का जिक्र जरूरी। वो था सलमान खान का काला हिरण मामला। काले हिरण केस में सलमान को बेल दिलाने वाले वकीलों की टीम में जगदीप धनखड़ भी शामिल थे।
Jagdeep Dhankad बंगाल के गवर्नर बने
मोदी और अमित शाह की बीजेपी में जगदीप धनखड़ के दिन बहुरे। सालों तक राजनीतिक अज्ञातवास के बाद साल 2019 में धनखड़ को बीजेपी ने पश्चिम बंगाल का गवर्नर बना दिया और इसके बाद धनखड़, टीवी और अखबारों की सुर्खियों काबिज हो गए। दिल्ली के पूर्व LG अनिल बैजल और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की टसल ने जितनी हेडलाइन्स बटोरीं उतनी ही पश्चिम बंगाल के गर्वनर जगदीप धनखड़ और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के संघर्ष ने भी।
धनखड़ के राजभवन पहुंचने के साथ ही ममता बनर्जी से टसल देखी जाने लगी। ममता सरकार ने आरोप लगाया कि राज्यपाल धनखड़ बीजेपी के एजेंट की तरह काम कर रहे हैं। दी इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक पिछले साल पश्चिम बंगाल विधानसभा के स्पीकर बिमान बनर्जी ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से राज्यपाल धनखड़ की शिकायत भी की। स्पीकर ने आरोप लगाए कि राज्यपाल सरकार के कामकाज में दखलंदाजी कर रहे हैं। बदले में राज्यपाल धनखड़ ने स्पीकर पर आरोप लगाए कि उनके अभिभाषण के दौरान स्पीकर ने वीडियो कवरेज रोक दी। राज्यपाल ने ये भी आरोप लगाया कि स्पीकर ने सदन में उनकी एंट्री रोक दी थी।
इसके अलावा ममता सरकार और राज्यपाल के बीच इस साल एक और बड़ा विवाद देखा गया जब सरकार ने राज्य की कई यूनिवर्सिटी के चांसलर के पद से राज्यपाल को हटा कर मुख्यमंत्री को चांसलर बनाने का बिल पारित कर दिया। ये बिल विधानसभा से पास हो चुका है।
इसके अलावा मुख्यमंत्री और राज्यपाल की लड़ाई में इस साल एक दौर वो भी आया जब सीएम ममता बनर्जी ने गवर्नर जगदीप धनखड़ को ट्विटर पर ब्लॉक कर दिया।
उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार
बीजेपी की राजनीति को करीब से समझने वाले अब तक ये दावा करते थे कि ये पार्टी, दूसरे दल से आए नेता को सम्मान तो देगी लेकिन पद नहीं। पद उनको ही मिलेगा जो अपनी राजनीति की शुरूआत से पार्टी के साथ हैं। लेकिन पार्टी के हालिया फैसलों ने इस ओर इशारा कर दिया है कि बीजेपी अब इस लीक को तोड़ चुकी है। मणिपुर में जवानी भर कांग्रेस की राजनीति कर बीजेपी में आए एन बीरेन सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया। असम में जीवन में कांग्रेस की राजनीति कर बीजेपी में आए हिमंता बिस्व सर्मा को बीजेपी ने सीएम बना दिया। बाप दादा के जमाने से यूपी में कांग्रेस के निशान पर राजनीति करने वाले जितिन प्रसाद को भी योगी कैबिनेट में जगह मिल गई और अंततः राजनीति में कई घाट छूकर बीजेपी में आए जगदीप धनखड़ भी देश के नए उप राष्ट्रपति बने।
लेकिन जानकार कहते हैं कि धनखड़ को उपराष्ट्रपति बनाने के पीछे बीजेपी का लालच है। ये लालच है जाट वोटों का। बीजेपी धनखड़ को उपराष्ट्रपति बनाकर राजस्थान, हरियाणा और पश्चिमी यूपी के जाटों को साधने की कोशिश में है। लेकिन सवाल ये है कि क्या इस सांकेतिक संदेश से जाट से खुश हो जाएंगे?
राजस्थान, हरियाणा और पश्चिमी यूपी की जाट राजनीति
बीते कुछ समय से देश में ये एक परसेप्शन बना है कि जाट बीजेपी से नाराज़ है। उस परसेप्शन को बल दिया किसान आंदोलन ने। लेकिन हरियाणा और यूपी के जाटों की जैसी नाराज़गी राजस्थान में नजर नहीं आती। ना ही किसान आंदोलन का राजस्थान के किसानों पर खास असर देखने को मिला। ये कहा जाना कि राजस्थान के जाट बीजेपी से नाराज़ हैं, तर्कपूर्ण नहीं होगा। राजस्थान के जाट उसी को वोट देते हैं, जिसके जीतने के आसार ज्यादा होते है। अगर बीजेपी का जाट कैंडिडेट हारता है तो सामने जीतने वाला भी ज्यादातर जाट ही होता है।
हालांकि जानकारों का मानना है कि भले ही थोड़ा सही लेकिन धनखड़ अगर उपराष्ट्रपति बनते हैं तो राजस्थान में बीजेपी को फायदा देखने को मिल सकता है। त्रिभुवन के मुताबिक धनखड़ को सिर्फ जाति तक सीमित नहीं किया जा सकता। राजस्थान में वकीलों की भी बड़ी संख्या है। धनखड़ पेशे से वकील रहे हैं। और इस मैसेजिंग का असर वकील पर पड़ता जरूर दिखेगा।
वहीं इसके इतर जानकारों के एक गुट का मानना है कि, राजस्थान में बीजेपी के खिलाफ जाटों में कोई खासी नाराज़गी नहीं है। किसान आंदोलन का असर भी अगर कहीं देखने को मिला है तो वो नागौर, सीकर, झुंझुनू , गंगानगर और चुरू तक सीमित है। लेकिन धनखड़ को उपराष्ट्रपति बना देने से राजस्थान के जाटों को कोई फर्क पड़ेगा, ऐसा कहना गलत है। धनखड़ ना कभी राजस्थान के किसानों के नेता रहे ना ही जाटों के। जाटों का वोट उधर ही पड़ेगा जिधर जीतने की संभावना ज्यादा हो।
बात अगर हरियाणा की करें तो यहां जाट में बीजेपी के प्रति गुस्सा बनिस्बत ज्यादा है। वरिष्ठ पत्रकारों का कहना है कि, बंसी लाल, ओम प्रकाश चौटाला और भूपेंद्र सिंह हुड्डा के 18 साल के जाट मुख्यमंत्रियों के दौर के बाद 2014 में जब बीजेपी ने नॉट जाट मनोहर लाल खट्टर को सीएम बनाया तो जाटों में गलत संदेश गया। उसके बाद रही सही कसर किसान आंदोलन ने पूरी कर दी। जाटों में बीजेपी के खिलाफ एक नैरेटिव खड़ा हो गया। लेकिन धनखड़ के उप राष्ट्रपति बनने से कोई खास असर नहीं पड़ने वाला। सिवाए एक मैसेज जाने के।
इधर पश्चिमी यूपी में जाट पर बीजेपी की निगेटिव इमेज का सबसे बड़ा कारण किसान आंदोलन को माना जाता है। इंडिया टुडे के नेशनल अफेयर्स एडिटर राहुल श्रीवास्तव कहते हैं कि राजस्थान के धनखड़ को उपराष्ट्रपति बना देने से वेस्टर्न यूपी के जाटों को कोई खासा असर नहीं पड़ेगा। हालांकि टीवी पर जब धनखड़ राज्यसभा में जब हाउस को आर्डर में रहने का आदेश दे रहे होंगे तो तीनों राज्यों के जाट उन्हें देख रहे होंगे।
लेकिन जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति की कुर्सी के नज़दीक पहुंचने में कई और कहानियां भी हैं। कहा जाता है कि बीजेपी में शामिल होने के बाद धनखड़ पार्टी से ज्यादा RSS के नज़दीक हो गए। RSS के अधिवक्ता एसोसिएशन के गठन में भी धनखड़ का अहम रोल रहा है। उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों को ऐलान से करीब 10 दिन पहले धनखड़ अपनी पत्नी के साथ जयपुर एक शादी समारोह में शामिल होने आए थे इसी दौरान संघ प्रमुख मोहन भागवत राजस्थान के दौरे पर थे। उन्हें झुंझुनू भी जाना था। शादी समारोह में शामिल होने के बाद धनखड़ तो कोलकाता राजभवन लौट गए, लेकिन उनकी पत्नी झुंझुनू गई। सूत्रों के हवाले से छपी ख़बरों के मुताबिक, मोहन भागवत धनखड़ के घर गए। धनखड़ की पत्नी ने उन्हें आवभगत की। उन्हें खाना भी खिलाया।
हालांकि जगदीप धनखड़ की पत्नी सुदेश धनखड़ कहती हैं कि उस दिन मोहन भागवत से उपराष्ट्रपति चुनाव के बारे में कोई बात नहीं हुई। उपराष्ट्रपति भवन आने के लिए पूरी तरह आश्वस्त सुदेश फिलहाल कोलकाता के राजभवन में सामान पैक कर रही हैं। उन्होंने कहा, इस बारे में पहले हमें भी जानकारी नहीं थी। 16 जुलाई की सुबह 9 बजे प्रधानमंत्री मोदी ने फोन किया। उन्होंने कहा था कि हम कोशिश कर रहे हैं और शाम को उपराष्ट्रपति पद का ऐलान हो गया।
पीएम मोदी का फोन आना अपने आप में पर्याप्त था। 16 जुलाई को शाम 4 बजे बीजेपी की बैठक हुई और शाम ढलने से पहले बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया।
फिर वोटिंग हुई और Jagdeep Dhankad को उपराष्ट्रपति पद पर काबिज़ हो गए।
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