अनुराग कश्यप ने ‘दोबारा’ फ़िल्म बनाई है। ये 2018 में आई स्पैनिश फिल्म ‘मिराज’ का ऑफिशियल इंडियन अडैप्टेशन है। अनुराग कश्यप के लिए ‘चोक्ड’ और ‘सेक्रेड गेम्स’ जैसे प्रोजेक्ट्स लिख चुके निहित भावे ने इस कहानी को अडैप्ट किया है। तापसी पन्नू, पावैल गुलाटी, शाश्वत चैटर्जी, विदुषी मेहरा, राहुल भट्ट और हिमांशी चौधरी जैसे एक्टर्स फिल्म की कास्ट का हिस्सा हैं। Scroll down to read dobara review in hindi.
दोबारा की कहानी क्या है?
‘दोबारा’ की कहानी एक शहर और दो टाइमलाइन में चलती है। पुणे शहर के हिंजेवाड़ी से कहानी खुलती है। साल है 1996। एक रात भयंकर तूफान आता है। अनय नाम का बच्चा इस तूफान में बाहर निकलता है, और किसी कारण से मारा जाता है। फिर हम पहुंचते हैं साल 2021 पर। अनय के पुराने घर में एक फैमिली शिफ्ट होती है। तापसी का किरदार अंतरा इसी फैमिली का हिस्सा है। अंतरा पाती है कि घर में कुछ पुरानी चीज़ें अभी भी मौजूद हैं।
उन्हीं में से है एक टीवी। वो उस टीवी को चालू करती है। ऐसी रात को जब फिर से वही 25 साल पुराना तूफान शहर लौट आया है। अंतरा को अपनी टीवी स्क्रीन पर अनय दिखता है। वो उससे बातें करने लगती है। ऐसे ही सेक्सी लग रहा था के मंत्र को मानते हुए अंतरा का ये कदम उसकी पूरी दुनिया बदल कर रख देता है। आगे पूरी फिल्म में वो और ऑडियंस, यही समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर हो क्या रहा है.
तापसी की किरदार टाइम के साथ छेड़छाड़ कर देती है। ‘दोबारा’ अनुराग कश्यप के करियर की सबसे कमर्शियलनुमा फिल्मों में से एक है। पहला तो यहां एक भी गाली नहीं। दूसरा, फिल्म में गानों का आना। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि फिल्म की कमर्शियल अपील बढ़ाने के चक्कर में अनुराग कश्यप अपने एलिमेंट्स यूज़ करना भूल गए हों। अगर आपने उनके सिनेमा को फॉलो किया है, तो उसके निशान आपको यहां भी मिलेंगे।
इन्हीं पॉइंट्स में सबसे पहले आती है हिंसा। वायलेंस ने अनुराग को एक अलग किस्म की फैन फॉलोइंग गिफ्ट की है। लेकिन उनके सिनेमा की हिंसा खोखली नहीं होती। ‘दोबारा’ में एक सीन है, जहां मर्डर होने वाला है। बस चीज़ें उस मर्डर तक बिल्ड अप हो रही हैं। आहिस्ता-आहिस्ता हम उस सीन तक पहुंचते हैं। फिल्म भले ही वहां अपनी पेस पर पहुंच रही हो, लेकिन हमारा मन पहले ही वहां पहुंच चुका होता है। ज़ाहिर न करते हुए भी हम चाहते हैं कि अब बस वो मर्डर देखने को मिल जाए।
उस हिंसा को सेलिब्रेट भले ही नहीं करते। लेकिन क्या उसके इंतज़ार में उत्सुक नहीं होते? कश्यप के सिनेमा का वायलेंस हमें अपने उसी हिस्से से मिलाता है। वो हिस्सा जो स्क्रीन पर होने वाली हिंसा के इंतज़ार में बैठा है। इसी हिंसा से उपजता है डर। अनुराग की फिल्मों में हमें भूतों से डर नहीं लगता। बल्कि डर लगता है परिस्थितियों से, उनमें कैद इंसानों से। यहां ये दोनों बातें हैं। सिलवेस्टर फोनसेका फिल्म के सिनेमैटोग्राफर हैं। यहां तूफान वाले सीक्वेंस पर उनका काम फिल्म को उसका ज़रूरी हॉरर एलिमेंट देता है। अनुराग के सिनेमा की हिंसा और हॉरर पर बात हो गई। अब बात उनके सिनेमा के ह्यूमर की, जिसे वो अपने ढंग से इस्तेमाल करते हैं।
दोबारा फ़िल्म रिव्यू
फिल्म कट-टू-कट चलती है। परिस्थितियां चाहे कितनी भी विषम या डार्क हो जाएं, उनमें ह्यूमर का स्कोप हमेशा बना रहता है। कभी कम तो कभी ज़्यादा, पर रहता ज़रूर है। बस हम बड़ी पिक्चर के चक्कर में उस तरफ से आंखें फेर लेते हैं। ‘दोबारा’ में वो सिम्पल लाइनों से आने वाला ह्यूमर आपको कई पॉइंट्स पर देखने को मिलेगा। पिछले कुछ समय से अनुराग कश्यप पॉलिटिक्स को लेकर भी वोकल हुए हैं।
उनका हालिया सिनेमा और उनके इंटरव्यूज़ देखेंगे तो समझ जाएंगे। ‘दोबारा’ में भी ढूंढने पर एक पॉलिटिकल कमेंट मिलता है। एक सीन में पुलिसवाला किसी से पूछताछ कर रहा है। वो कहता है, “लोगों को बिना बात उठा लिया जाता है। तेरे यहां तो फिर भी कंकाल मिला है”।
‘दोबारा’ एक थ्रिलर फिल्म है, जो कट-टू-कट चलती है। फिल्म की दोनों टाइमलाइन एक साथ चलती हैं, और इनके बीच का ट्रांज़िशन अखरता नहीं। हालांकि, अपनी तेज़ पेस की वजह से फिल्म कुछ सवालों के जवाब देना भी भूल जाती है।
ऊपर से ‘दोबारा’ पर भले ही एक थ्रिलर फिल्म का लेबल लगेगा, लेकिन सतह से अंदर जाकर ये कई थीम्स एक्सप्लोर करना चाहती है। उन्हीं में एक है कि चाहे आप कितने भी खोए हों, कहां भी खोए हों, पर प्यार आपको बचा लेगा। अनुराग ऐसे फिल्ममेकर नहीं, जो हार्डकोर रोमांस सिनेमा बनाने के लिए जाने जाते हों।
उस लिहाज़ से ये कहानी में फ़ील गुड वाला एलिमेंट जोड़ता है। बस मसला ये है कि इस पक्ष को प्रॉपर स्पेस नहीं मिलता। शायद ऐसा फिल्म की लेंथ को कम रखने के मकसद से किया गया हो।
स्पैनिश फिल्म ‘मिराज’ का ऑफिशियल इंडियन अडैप्टेशन है ‘दोबारा’
अब बात फिल्म के एक्टर्स पर – तापसी, पावैल, शाश्वत समेत सभी एक्टर्स बिल्कुल वही करते हैं, जो उस सीन की ज़रूरत हो। अपने कैरेक्टर को ब्रेक नहीं करते। उसमें कुछ ऊपर या नीचे नहीं जोड़ते। ऐसा करते हुए ये लोग किसी सेट ढर्रे में नहीं बंधकर रह जाते। आपको ऐसा नहीं लगता कि ये किरदार स्क्रीन पर आया है तो हंसाएगा ही, या डराएगा। ये एक्टर्स अपने किरदार की परिस्थिति समझते हैं, और उसके मुताबिक एक्ट करते हैं। यही उनके किरदारों को रेंज भी देता है और उन्हें मानवीय भी बनाता है।
‘दोबारा’ ऐसी फिल्म है जिसे देखने का अनुभव भले ही आप अपने चार दोस्तों को बता सकते हों। लेकिन उन्हें कहानी समझा नहीं पाएंगे। उसके लिए उन्हें खुद सिनेमाघरों में जाकर फिल्म देखनी होगी। हमारी राय है कि आप सिनेमाघर में जा के ये फ़िल्म देख ही लीजिए। हम दोबारा को 5 में से 3 स्टार देना चाहेंगे।
तो ये था फिल्म दोबारा का हिन्दी रिव्यू आप अपनी राय हमें कमेंट करके बताएँ। ऐसी ही और खबर पढ़ने के लिए हमारी वेबसाईट देखें और हुमसे जुड़े रहने के लिए सोशल मीडिया पर हमें फॉलो करें – फेस्बुक | ट्विटर | इंस्टाग्राम और विडिओस लिए हमारा यूट्यूब चैनल है सबस्क्राइब करलो। हम हैं खबरज़ादे हमारा अंदाज़ निराला है।